इल्म
(Adult Education Programme)
कुछ दरीचे बंद थे, कैसे आये महकती सबा,
उम्र के इस दौर का, जोश बहोत अच्छा लगा
बढ गए उनके क़दम, कुछ सीखने की चाह में,
इल्म होगा कितना हासिल, वक़्त देगा इसका पता
कारवाँ गुज़र गया, ज़ोफ जिस्मो-जान में,
दमे आखिर कलम से, हो रही अब इब्तिदा
बेशुमार कलियाँ चमन में, तड़प रहीं, बेनूर भी,
ख़्वार होती जवानियाँ, पूछती सबसे जा-ब-जा
चंद सिक्कों की खनक में, हर इल्म कहीं खो गया,
अलिफ, बे ग़रीब न जाने, जीना उनका इक सज़ा
हों मुसलसल कोशिशें, गर तरक्क़ी के वास्ते,
क्या मजाल हुनर की, सर झुकाए रहे पास खड़ा
मोहताज, नाचार बशर, सोती रही हुकूमतें,
"रत्ती" विरासत में मिला, तंगहाल टूटा मदरसा