ग़ज़ल - ४
बात है बस एक दिल में प्यार होना चाहिये
चांद ताकता आसमां से छुप के तेरी हर अदा,
है निशानी इश्क़ की इज़हार होना चाहिये
एक तरफा प्यार बढती बेक़रारी क्या देगी,
बारहा अब चाह बस गुफ़्तार होना चाहिये
चोट मारी है जिगर पे हमसफर ने ख़ाब में,
रु - ब -रु नज़दीक से ही वार होना चाहिये
जब किसी साये ने छेड़ा झट से बोली रूह भी,
फासला तहज़ीब का सरकार होना चाहिये
इश्क़ सबको मज़ा दे गर प्यार सच्चा है किया,
प्यार में बस प्यार "रत्ती" प्यार होना चाहिये
शब्दार्थ
पेच-ओ-ख़म =घुमाव और मोड़, ख़ार = कांटा
रु-ब-रु = सामने, बारहा = बार-बार, गुफ़्तार = बातचीत