Wednesday, February 8, 2012

ग़ज़ल - ५

ग़ज़ल - ५



बोले न मुंह से लिखे माही किताब में

पहली दफा लिखा ख़त है मुझे जवाब में



जगमग हुआ है दिल कितने दिन के वास्ते

महका खिला ये गुल उजड़े से सराब में



वो ऐब को हुनर कहते हैं सही नहीं

मय लुत्फ़ दे मगर खुमारी शबाब में



नाशाद दिल किसी दिन टूटे यक़ीन हैं

तदबीर ढून्ढ लो इस पल तुम अज़ाब में



हैवान, तिशन-ए-खूं सियासत पसंद जो

फिर मुल्क लूटेंगे सब इस इन्तखाब में



रहमो-करम दुआ करना भूल सा गये

तहज़ीब की झलक मिले "रत्ती" अब ख़ाब में



२२१ / २१२१ / १२२१ / २१२

शब्दार्थ

शब्दार्थ


सराब = रेगिस्तान,  खुमारी = नशा,  शबाब = जवानी,

नाशाद = अप्रसन्न,  तदबीर = उपाय,  अज़ाब = परेशानी,

तिशन-ए-खूं = खून का प्यासा,  इन्तखाब = चुनाव,  तहज़ीब = संस्कार