ग़ज़ल - ६
सुब्ह भी खुल के कभी हसती नहीं तो क्या हुआ I
रूठ जाये शाम ये बोलती नहीं तो क्या हुआ II १ II
गाहे-गाहे वो मेरी दहलीज़ पर आने लगे I
शोख नज़रें इस तरफ तकती नहीं तो क्या हुआ II २ II
क़ुर्ब है अहसास है इस दिल में बसते आप हैं I
काकुलों में उंगली फेरी नहीं तो क्या हुआ II ३ II
जोश में तो होश भी जाता रहा सरकार का I
इश्क़ में मन की कभी चलती नहीं तो क्या हुआ II ४ II
बिखरे हैं अल्फाज़ शायर यूं ही हम तो बन गये I
सुब्ह भी खुल के कभी हसती नहीं तो क्या हुआ I
रूठ जाये शाम ये बोलती नहीं तो क्या हुआ II १ II
गाहे-गाहे वो मेरी दहलीज़ पर आने लगे I
शोख नज़रें इस तरफ तकती नहीं तो क्या हुआ II २ II
क़ुर्ब है अहसास है इस दिल में बसते आप हैं I
काकुलों में उंगली फेरी नहीं तो क्या हुआ II ३ II
जोश में तो होश भी जाता रहा सरकार का I
इश्क़ में मन की कभी चलती नहीं तो क्या हुआ II ४ II
बिखरे हैं अल्फाज़ शायर यूं ही हम तो बन गये I
सीख "रत्ती" शायरी आती नहीं तो क्या हुआ II ५ II
२१२२, २१२२, २१२२, २१२