Wednesday, March 28, 2012

ग़ज़ल - ६

ग़ज़ल - ६

सुब्ह भी खुल के कभी हसती नहीं तो क्या हुआ I
रूठ जाये शाम ये बोलती नहीं तो क्या हुआ II १ II

गाहे-गाहे वो मेरी दहलीज़ पर आने लगे I
शोख नज़रें इस तरफ तकती नहीं तो क्या हुआ II २ II

क़ुर्ब है अहसास है इस दिल में बसते आप हैं I
काकुलों में उंगली फेरी नहीं तो क्या हुआ II ३ II

जोश में तो होश भी जाता रहा सरकार का I
इश्क़ में मन की कभी चलती नहीं तो क्या हुआ II ४ II

बिखरे हैं अल्फाज़ शायर यूं ही हम तो बन गये I
सीख "रत्ती" शायरी आती नहीं तो क्या हुआ II ५ II
२१२२, २१२२, २१२२, २१२

Wednesday, March 7, 2012

"होली का हुडदंग"


प्रिय मित्रो, आप सबको होली की शुभ कामनाएं, 
होली के इस अवसर पर एक छोटा गीत पेश कर रहा हूँ - सुरिन्दर रत्ती    

"होली का हुडदंग"
 
राधा भई बावरी, श्याम भये मस्ताने
भिगोते हैं अंगिया, कोई बुरा न माने
वो होरी क्या जिसमें, न हो कहीं बरजोरी
दुबक के जो बैठे हैं, लगे उनको नहलाने
 
इक हाथ रंग का थाल, दूजे बड़ी पिचकारी
सखियों संग राधा जी, लग रही हैं प्यारी
वृन्दावन ही नहीं, धूम मची बरसाने
राधा भई बावरी, श्याम भये मस्ताने.....
 
सोरह सिंगार करके, मुख सबके चमके
विभोर हैं नर-नारी, रंगों को मल-मल के      
अदभुत है ये लीला, कोई माने या न माने 
राधा भई बावरी, श्याम भये मस्ताने.....
 
रंग-बिरंगे रंगों की, सुन्दर सुन्दर छटा
सुहानी बेला होरी की, छाई मोहनी घटा
ग्वाल-बाल झूम के, गाते मधुर गाने
राधा भई बावरी, श्याम भये मस्ताने.....
 
खूब खाए जा रहे, भांग की पकौड़ीयां
हलुवा, पूड़ी, रसमलाई, स्वाद भरी कचौड़ियाँ
सारे ग्रामवासी, भर पेट लगे खाने
राधा भई बावरी, श्याम भये मस्ताने.....
 
भरो रोम-रोम में, प्यार श्रद्धा युक्त रंग
उन्माद हो भक्ति का, ब्रम्हांड नायक भी हो दंग
"रत्ती" ऐसी होरी चाहूँ , मिलन के नित हों बहाने
राधा भई बावरी, श्याम भये मस्ताने.....