Thursday, August 16, 2012

चाँद

चाँद




चौदहवीं के चाँद हो, कब तलक तरसाओगे
आसमां से ही देखोगे, ज़मीं पे कब आओगे
यह गुरुर-ए-जवानी, बहुत दूर ले जायेगी
तुम चाह के भी न, मेरे क़रीब आओगे

बादलों की ओट का, लेते हो रोज़ सहारा
लुका-छिपी के खेल से, कुछ न हासिल कर पाओगे

शर्मो-हया, शीतलता, चंचलता बची नहीं
सूरज की तरह तुम भी, शोले बरसाओगे

दिल है पास तुम्हारे या, संग लिये फिरते हो
ज़ख्मों से तन भरा हो, तो भी तीर चलाओगे

ये बेरुखी की बातें, बरसों बाद मुलाकातें
मुंह फेरना ठीक नहीं, रु-ब-रु कब आओगे

कोई गरजता है कभी, तो कोई बरसता है
नागों सा इक दिन "रत्ती" रत्ती निगल जाओगे