Friday, January 18, 2013

"पडोसी"


दोस्तों, भारत पाक सीमा पर जो  हो रहा है, वो बड़ा ही दुखद है, हमारे जवानों के सर को कलम कर दिया गया,

इस बात से हर हिंदुस्तानी के दिल को चोट लगी है, एक छोटी सी रचना पेश कर रहा हूँ शीर्षक है "पडोसी"

"पडोसी"

 

मेरे शहर की गावों से अब नहीं बनती

बिलावजह जाने क्यूँ भोहें हैं तनती

 

गली-गली में अमन की बात करते हैं,

फिर अचानक तलवारें हवाओं में चमकी

 

मुल्कों, मजहबों, जातियों में बटे दिल,

दो सगे भाइयों में भी अब नहीं बनती

 

फिर लहू बहेगा ज़मीं पे बेगुनाहों का,

सरहद पार से रही है रोज़ धमकी   

 

सर कलम करके क्या होगा हासिल,

डर ख़ुदा का खौफ़ किये जाओ मन की

 

पडोसी नज़रें तरेरता बेलगाम हुआ,

पल में तोला, पल मैं माशा, बड़ा है सनकी

 

हुक्मरां, ख़ामोश, तमाशबीं बन बैठे,

अवाम बेज़ार ख़ुदा लाज रखे वतन की

 

जानवरों से भी बदतर बशर का चलन,

"रत्ती" फ़िक्र हयात की और तन की

Monday, January 14, 2013

गीत - 4

गीत - 4
साये पूछते हैं हमें रात में
क्या खता हुई थी मुलाकात में
रुसवाई की मैं सोच नहीं सकता
आपका हाथ थामा है हाथ में
साये पूछते हैं हमें रात में,,,,,
गुलाबी रुत की बेरुखी और ताने
बोलो कहाँ जाये अब तेरे दिवाने
सबा भी जैसे मुंह फेरती हो
ज़रा मज़ा नहीं इस बरसात में
साये पूछते हैं हमें रात में,,,,,
उन दीवारों के कान बड़े पतले
दिल मचले तो भला कैसे मचले
पानी भी जो फूंक के पीना पड़े
इक बेकसी बची है हयात में
साये पूछते हैं हमें रात में,,,,,
हर लम्हे की अजब कहानी
रु-ब-रु होती रहती हैरानी
दिल न बहलायेंगे ऐसे मंज़र
ग़म दस्तक दे इन हालात में
साये पूछते हैं हमें रात में,,,,,

Thursday, January 3, 2013

गीत - 3

गीत - 3

आँखों से दिखता नहीं, बाहर का उजाला 
अंदर की दुनियां का, खेल है निराला 

सपने भी पलते यहाँ, अरमान तड़पते हैं 
आहें कराहती हैं, और दर्द भी हंसते हैं
गला निगलता नहीं, मुंह का निवाला    
आँखों से दिखता नहीं, बाहर का उजाला .....

नये-नये ज़ख्म मिले, लिपटे रहे जान से
आशियाँ ये ताउम्र का, रहो इसमे शान से
ऐसे में याद आ गया, वो पर्वत का शिवाला     
आँखों से दिखता नहीं, बाहर का उजाला .....

टूटे के बिखरा तन, डर के ले अंगडाईयां 
रात में आ गयी, मेरे हिस्से तन्हाइयां  
ये सुबह तीरगी भरी, चेहरा इसका काला 
आँखों से दिखता नहीं, बाहर का उजाला .....