Tuesday, September 17, 2013

ग़ज़ल - ११

ग़ज़ल - ११
बदनाम करते लोग कहें सच्चे यार हैं।
हम आपके लिए करते जां निसार हैं।।
दामन लगे हैं दाग धुलेंगे न अश्क़ से,
दौलत सवाब की कम है इन्तिशार हैं।
अरमान पालना दुश्वारी से कम नहीं,
फिर भी तलब नशा इतना हम शिकार हैं।
वो खौफ़ दर्द थामे खड़े तकते चार सू,
ऐसे हबीब ज़ख्म देंगे नागवार हैं।
ये वलवले बड़ी उम्मीदों भरे लगे,
हलके वरक महज़ लगते इश्तहार हैं।
शीशा कहे रहम करो तन्हा मुझे रखो,
फितरत है टूटना ग़म भी बेशुमार हैं।
चिंगारियां छुपी थी दबे पाँव आ गयी,
जलता रहा बदन हवाएं साज़गार हैं।
मुडती गली सुहावने मंज़र दिखायेगी,
"रत्ती" किसे खबर तपते आबशार हैं।
शब्दार्थ
सवाब = पुण्य, इन्तिशार = परेशान,
चार सू = चारों तरफ, हबीब = मित्र,
नागवार = अप्रिय, वलवले = उमंग,
वरक = पन्ने, साज़गार = अनुकूल,
आबशार = झरना

Monday, September 2, 2013

दीवाना

दीवाना
क़ातिल तेरी निगाहें हर बात शायराना
तूने सोच बनायी ऐसी बस सितम ढाना
मेरे सोज़ दिल का कोई तो होगा मदावा
दर्द तुमने दिया है दावा भी तुम बताना
नज़रों की न पूछो क़यामत हैं क़यामत
मैं भी हूँ परेशां और सारा ये ज़माना
इक तेरी आरज़ू और मखमली जुस्तजू
गुज़ारूँ वहीँ ज़िन्दगी जहाँ तेरा आशियाना
मैं क़दमों को रोक लूँगा अनजानी राहों से
फकत एक बार बता अपना ठिकाना
तलबगार हूँ तलब ये मेरी दीदार हो जाये
"रत्ती" कोई कहे मजनू कोई बोले दीवाना