Friday, July 25, 2014

गीत - १

गीत - १
चल तू भी उसी डगर पे
जहाँ तेरी हो सुनवायी
दुःख के बदल सब छुप जायें
दिल कहे अब शांति पायी

आस के पैर नहीं अब टिकते
वो रहनुमां थे नहीं दिखते
कई बार एहसास हुआ ये
बेवजह उदासी छायी

ये समां भी महंगा इतना
समझाऊँ मैं उसको कितना
छोड़ दे मुझे अकेला
काहे तूने चोट लगायी

नज़रें लगीं ख़फा-ख़फा सी
हर बात कड़वी दवा सी
"रत्ती" थोड़ी मिठास भर दे
मन में ऐसी सोच न आयी

चल तू भी उसी डगर पे
जहाँ तेरी हो सुनवायी …..