Thursday, January 19, 2017

गीत .  


इन झीलों के मुख पे लाली नहीं 
हुई ठंडक गुम हरियाली नहीं 


है रात पे पहरे जो खौफ भरे
सुब्ह के चेहरे लगे डरे-डरे 
दोपहर आंसुओं भरी खाली नहीं 


ये मौसम कटीले जाड़ों का 
और पत्थर सीना पहाड़ों का 
उजड़े चमन का कोई माली नहीं 


ढलती उम्र संग ढले नज़ारे 
आखिरी वक़्त कोई पुकारे 
"रत्ती" हम मुसाफिर सवाली नहीं 





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