Thursday, February 2, 2017

गीत न. ५

गीत न. ५       
                  

मैं अपनी बेगुनाही के सुबूत देता रह गया।  
ज़मीं का रहनेवाला हूँ वो आसमां से कह गया।।
ये कौन से रिश्ते कैसे रिश्ते, क्या बला हैं, 
मोहोब्बत का इक किला पल में ढह गया।  


अभी कितने सितम देखो राहों में खड़े,
नन्हीं सी जां किस-किस से कैसे लड़े,
आसुओं भरा दिल न चाहते सब सह गया।


वह अफ़साने नहीं शोलों के अम्बार हैं,
न मुस्कान प्यार भरी, न एतबार है,
मोम सा पिघले जिस्म ज़मी पे बह गया।


अजीब दोस्ती देखी आपकी जनाबेआली,
हवा मैं तैरती हसरतें, झूठी और खाली,
"रत्ती" हसीं खाब था, खाब ही रह गया।